गुरुवार, 8 अप्रैल 2010

सूरजमुखी : सूरज से दुःखी

...एक कविता पढ़ रहा था जिसमें सूरजमुखी की तरह सूर्य की ओर मुड़नें की उपमा दी गई थी। अमूमन सूरजमुखी की उपमा ‘सूरज के प्रति प्रेम’ या ‘रोशनी की ओर उन्नमुख’ होने के अर्थ में दी जाती है। लेकिन अगर गौर से देखा जाए तो सूरजमुखी वस्तुतः सूरज से दुखी है।


....कैसे?...

...वो ऐसे कि सूरजमुखी के सूरज की ओर होने का कारण ये है कि उसके फूल की डाली का वह हिस्सा जो सूरज की तरफ है वह कम विकास कर पाता है, या यूँ कहें कि जो हिस्सा सूरज के विपरीत / अंधेरे की तरफ होता है उसमें विकास ज्यादा होता है। फलतः विकास की असमानता एक घुमाव पैदा करती है जो सूरज की ओर झुका होता है।

अब देखा जाए तो सूरज की ओर का यह झुकाव तने के “सूरज की रोशनी में कम विकास” करने की वजह से ही है। और लोग इसे ‘सूरज के प्रति प्रेम’ के रूप में देखते हैं। है न कितनी उलटबाँसी।

मुझे तो ये लगता है कि सूरजमुखी सूरज की ओर गुस्से से देखती हुई कहती है कि “तेरी वजह से मेरी कमर टेढ़ी हो रही है बेशर्म!” आपको क्या लगता है??

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